स्वदेश आगमन

घासीराम ६ जून, १९६१ को भारत के लिए रवाना हो लिए। सामान अधिक था सो हवाई मार्ग के बजाय जल मार्ग चुना। बीच रास्ते में घासीराम ने कुछ दिन यूरोप भ्रमण किया। गहन अनुभव लिए जो उनके जीवन की आज थाति हैं।

बम्बई आगमन पर डॉ. रविन्द्रकौर ने उनका स्वागत किया। श्रीमती कौर ने अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी से पी-एच.डी. की थी। श्रीमती कौर के घर बम्बई में खाना खाया और ट्रेन पकड़ी। तीसरे दिन रात ११ बजे चिड़ावा पहुंचे। चिड़ावा से पिलानी गये और प्रो. दूलसिंह के घर जाकर आशीर्वाद लिया। मित्रा साहब से मिलकर भी खुशियां बांटी। उन्होंने बच्चों को लेकर पिलानी स्थापित होने का निमंत्रण दे दिया। फिर झुंझुनूं पहुंचे। वहां से अपने ससुराल नयासर गये। नयासर से सीगड़ी गांव पहुंचे तो डॉ. घासीराम को देखने सारा गांव उमड़ पड़ा। दो दिनों तक चौधरी लादूराम के घर मेला-सा रहा।

पिलानी प्रस्थान : दो दिन गांव में रूकने के बाद घासीराम अपने दो बच्चों और पत्नी को लेकर पिलानी पहुंचे। गृहस्थी जमने लगी। संघर्ष का दौर समाप्त हो चुका था।