राजस्थानी लोकगीतों ने दी रोटी

पिलानी में उन दिनों हिंदी विभाग में प्रसिद्ध विद्वान डॉ. कन्‍हैयालाल सहल थे। वे लोकगीतों के संकलन का काम कर रहे थे। सो उन्होंने विद्यार्थियों का सहारा लेते हुए कहा कि जो विद्यार्थी गीत लिखकर लाएगा उसे पैसे मिलेगें। बस घासीराम को और क्या चाहिए था।
पैसा ही उनके लिए आवश्‍यकता थी।
घासीराम जब गांव आया तो गांव के ही मालाराम हरिजन की गीतेरण पत्नी से सुन-सुनकर घासीराम ने ६० गीत लिखें; जिनकी एवज में उन्हें सहल साहब से ३० रूपये मिले। उन रूपयों से घासी ने छात्रावास मैस का खर्चा बड़े मजे से चलाया।