अमेरिका जाने बाबत प्रंबध

पासपोर्ट हेतु आवेदन पूर्व में ही कर दिया गया था। जून के अंत तक पासपोर्ट भी आ गया। अब आर्थिक प्रबंध अहम् था। मित्र आनंदीलाल रूंगटा की सलाह से जयपुर यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार व शिक्षा सचिव से आर्थिक सहयोग बाबत मिले, पर दोनों ही जगह से नकारात्मक जवाब मिला। उनका यही उत्तर था कि किराए का किसी योजना के तहत प्रबंध नहीं है। घासीराम रूआंसे होने को आ गए। उन्हें अपना सपना चूर होता दिखाई देने लगा। कहते हैं कि जब समस्या आती है तो उसका प्रयास करने पर कुछ हल भी निकलता है। यही घासीराम के साथ हुआ। आंनदीलाल रूंगटा के दिमाग में बिड़ला एज्यूकेशन ट्रस्ट, पिलानी का ख्याल आया। वहां से सम्पर्क करने पर २००० रूपये की स्वीकृति मिली। किराए में शेष आवश्‍यकता १००० रूपये थी। बचा कपड़ा आदि जिनका योग ५०० तो होना तय था।

घासीराम फिर जयपुर जाकर विधायक सुमित्रासिंह से मिले। अपनी जरूरत बताई। सुमित्रासिंह घासीराम को लेकर नाथूराम मिर्धा के पास गई। नाथूराम जी ने रामनिवास मिर्धा का सुझाव दिया। घासीराम रामनिवास जी के पास पहुंचे। रामनिवास जी ने जब घासीराम से जरूरत पूछी तो संकोची घासीराम ने १००० रूपये बताई। रामनिवास जी ने सहर्ष एक हजार की स्वीकृति दे दी। दूसरे दिन रामनिवास जी मिर्धा के सचिव ने घासीराम को १००० रूपये दे दिए। घासीराम को अफसोस था कि उसने अपनी जरूरत १५०० क्यों न बताई !

संकट ५०० का : घासीराम के अमेरिका किराये की तो व्यवस्था हो गई लेकिन छोटी-छोटी जरूरतों हेतु ५०० रूपये तो आवश्‍यक थे। इसी दौरान घासीराम ने बम्बई अपने पुराने विद्यार्थी महावीरप्रसाद शर्मा को पत्र लिखा। अमेरिका जाने व अर्थाभाव का उल्लेख स्वाभाविक था। महावीरप्रसाद ने अपने परिचितों से इसकी चर्चा की। पिलानी में घासीराम के शिष्‍य रहे चिड़ावा के विजयकुमार अड़ूकिया ने बम्बई से ५०० रूपये का मनिऑर्डर करवा दिया। घासीराम के लिए इस मदद के बाद अमेरिका जाने का रास्ता आसान हो गया।