हड़ताल का योगदान

उन्हीं दिनों प्रिसिंपल नीलकांतन का छात्रों ने विरोध कर दिया और हड़ताल कर दी। माहौल तनावपूर्ण हो गया। नीलकांतन का कॉलेज छुटना लगभग तय हो गया। इसी माहौल को समझकर प्रो. सेन ने घासीराम को सलाह दी कि तुम नीलकांतन साहब के पास अपनी छात्रवृत्ति बढ़ाने की अपील लेकर जाओ, क्या पता जाते-जाते तुम्हारा भला कर जाएं। सेन साहब का तीर सही लगा। नीलकांतन साहब ने छात्रवृत्ति बढ़ा दी। दो दिन बाद नीलकांतन साहब पिलानी छोड़कर रवाना हो गए।
मित्रा साहब नए प्रिसिंपल बनकर आए।

कॉलेज से अब घासीराम के प्रति १२५ रूपये का योगदान होने लगा। दलजीतसिंह के अलावा एक ५० रूपये का टयूशन और कर लिया। कुल २२५ हो गये।
घासीराम को और चाहिए क्या ?
उस वक्त एक लेक्क्चर का ही २०० रूपया वेतन था।