प्रो. पंत के रूप में देवदूत

घासीराम को आर्ट्स कॉलेज, पिलानी के संस्कृत प्रोफेसर ए.एस. पंत की दरियादिली का पता चला। वे उनसे मिले। महाराष्ट्रियन पंत जी घासीराम को लेकर नीलकांतन के पास पहुंचे। चर्चा के बाद तय हुआ कि घासीराम को ट्यूटोरियल कक्षाएं लेनी होगी; एवज में ५० रूपये मिलेंगे।
घासीराम को और क्या चाहिए ?
मेहनत करना तो समय की आवश्‍यकता सदैव रही है।
पंत जी 'बुद्ध भवन` के वार्डन थे। घासीराम को वहीं कमरा मिला गया। प्रो. पंत घासीराम के जीवन में देवदूत बनकर मददगार बने।
बुद्ध भवन की मैस का खर्चा ज्यादा था सो घासीराम ने आर्थिक विवशताएं चलते महादेव भाई छात्रावास की सस्ती मैस का भी सहारा लिया।