शिष्‍य की सद्भावना :

मैस व यूनिवर्सिटी फीस का भुगतान बचत व रामजी काक द्वारा दिए गए पैसों से हो गया। कुल जमा ५ रूपये बचे। आगे क्या होगा ?
अव्वल आना तो दूर परीक्षा कैसे दे पाऊंगा ?
घासीराम के लिए यह बड़ी समस्या थी।
उन्हीं दिनों बगड़ में पढ़ाए गए अपने एक शिष्‍य पुरुषोत्तम रूंगटा का पत्र घासीराम के पास आया था। रूंगटा ने पूछा था कि बनारस कैसी जगह हैं ? वह इंजीनियरिंग करने बनारस आना चाहता है। साथ ही गुरुजी के हालचाल भी पूछे थे। घासीराम ने जवाब लिखते हुए अपने आर्थिक संकट का हवाला भी निस्संकोच दिया। रूंगटा धनाढ़्य परिवार से था। उसने पत्र पाते ही गुरु घासीराम के लिए ३० रूपये का मनिऑर्डर करवा दिया। घासीराम को जैसे सबकुछ मिल गया। उन तीस रूपयों की कीमत घासीराम के लिए आज के तीस लाख रूपयों से भी कहीं अधिक है। इन ३० रूपयों से घासीराम ने फरवरी की फीस जमा करवा दी।