नौकरी की शुरूआत

घासीराम इस्लामपुर होते हुए राधे याम को साथ ले बगड़ पहुंचा। बी.एल. हाई स्कूल के उन दिनों हैडमास्टर श्री अब्रोल थे। घासीराम ने उनसे पिलानी में भूगोल पढ़ी थी। राधेश्‍याम की प्रशंसात्मक उक्तियों व अब्रोल साहब की दरियादिली से घासीराम को वह नौकरी मिल गई। घासीराम की खुशी का पारावार नहीं था।
१२ जुलाई से घासीराम ने १०० रूपये प्रतिमाह की नौकरी शुरू कर दी।

घासीराम का जीवन निर्बाध गति से चलने लगा। खाना २० रूपये प्रतिमाह, मकान २ रूपये प्रतिमाह बस। बाकी सारा पैसा घर ज्यों का त्यों भेज देते। घासीराम भी खुश घरवाले भी खुश।
उन्हीं दिनों घासीराम ने २०-२५ गणित के छात्रों को टयूशन पढ़ाना भी प्रारम्भ कर दिया। जो मिलता वह डाकघर में जमा कर देता। आगे बढ़ने के सपने अभी मरे नहीं थे।

उच्च अध्ययन हेतु संघर्ष भरे सफर का फिर से चुनाव : साथी अध्यापक रमेश गौड़ की सलाह से एम.ए. बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से करने का मानस बना। घरवालों के भारी विरोध के बावजूद मिली-मिलायी नौकरी छोड़ घासीराम बनारस रवाना हो गए। वे ५ जुलाई, १९५२ को बनारस पहुंचे। यूनिवर्सिटी व छात्रावास में प्रवेश लिया। कुछ पैसे पास थे, कुछ बगड़ डाकघर में जमा थे; वो बनारस डाकघर में स्थानांतिरत करवा लिए। काम बन गया। एम.ए. पूर्वार्द्ध की परीक्षा तक कोई संकट नहीं आया।

विद्याधर कुलहरि व सरदार हरलालसिंह का जीवन में योगदान : झुंझुनूं एम.ए. पूर्वार्द्ध परीक्षा देकर आना हुआ। मगर संग आगामी सत्र के अर्थ संकट का भी आगमन हुआ। घासीराम ने अपना यह संकट हंसासर के हरलालसिंह को बताया। हरलालसिंह ने योग्य घासीराम की मदद बाबत सोची। उन्हें झुंझुनूं के प्रसिद्ध वकील व धनाढ़्य समाजसेवी विद्याधर कुलहरि के पास ले गया। सारी स्थितियां बताई गई। विद्याधर जी ने घासी की योग्यता को नजरों से तोला और संतुष्‍ट हो तत्काल १०० रूपये दे दिए। एकबारगी काम चल गया।

एम.ए. उत्तरार्द्ध के दौरान दिसम्बर में घासीराम छुटि्टयां बिताने बनारस से फिर वापिस आए। वही अर्थाभाव। इस समय सरदार हरलालसिंह के नेतृत्व की तूती बोलती थी। जनवरी, १९५४ में घासीराम ने उनसे जयपुर जाकर मदद की प्रार्थना करने की सोची। सरदार हरलालसिंह पारखी थे। उन्होंने अनजान घासीराम का मौल जाना और अपने परिचित रामजी काक को निर्देशित किया। रामजी काक ने १०० रूपये थमा दिए। ये रूपये घासीराम के लिए चार महिनों के मैस भुगतान की पूर्णता थी। सरदार हरलालसिंह जी का आशीर्वाद ले घासीराम गंतव्य की ओर रवाना हुए।