स्नातक का सफर

घासीराम का बी.ए. का सफर भी पूर्ववत आर्थिक संकटों से घिरा रहा। १९५० में बी.ए. फाइनल के अंतिम दिनों में यह संकट और गहरा गया। नौबत मैस खर्च जमा न करने वालों को खाना बंद व छात्रावास से निकालने की धमकी तक आ पहुंची। दो-तीन दिनों की अग्रिम चेतावनी भरी खाना बंद सूची छात्रावास में चस्पा कर दी गई। घासीराम का नाम उस सूची में आने से भला कैसे रह सकता था। मगर घासीराम करे तो क्या करे ? घरवालों के पास पैसे कहां ? उधर शादी को भी ऊपर से दो साल और हो गये। परीक्षा सिर पर, छात्रावास का यह संकट और !

हरियाणा के साथियों द्वारा मदद : घासीराम का नाम खाना बंद होने वालों की सूची में गुड़गांव, हरियाणा मूल के कई सहपाठियों ने देखा; जो अक्सर घासीराम से गणित के सवाल पूछा करते थे तो वे तिलमिला गये। उन्होंने बिना घासीराम को बताये उनके बकाया का भुगतान किया।
घासीराम की इस उपकार के बदले में आंखे नम होने से भला कैसे रह सकती थी।