'नणदोई` की उपाधि

लोकगीतों के संकलन के दौरान घासीराम को सारे गीत कंठस्थ हो गए। उनके गले में वे गीत फबते भी बहुत थे। 'नणदोई` लोकगीत तो उनके गले से इतना अच्छा लगता कि हर जगह उसे सुनने की चाह होने लगी। और तो और घासीराम इसी कारण 'नणदोई` नाम से प्रसिद्ध भी हो गए।

इसी गीत को आगे चलकर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में साथी रामेश्‍वरसिंह (बाद के आई.ए.एस.) की फरमाइश पर सुनाया; वहीं वनस्थली विद्यापीठ में मित्र आनंदीलाल रूंगटा (आई.ए.एस.) की भूमिका के कारण नणदोई गीत सुनाना पड़ा।